शुक्रवार, 10 जून 2022

मत्स्य अवतार

 वे सर्वशक्तिमान् प्रभु वायुकी तरह नीचे-ऊँचे, छोटे-बड़े सभी प्राणियोंमें अन्तर्यामीरूपसे लीला करते रहते हैं⁠। परन्तु उन-उन प्राणियोंके बुद्धिगत गुणोंसे वे छोटे-बड़े या ऊँचे-नीचे नहीं हो जाते⁠। क्योंकि वे वास्तवमें समस्त प्राकृत गुणोंसे रहित—निर्गुण हैं ⁠।⁠।⁠६⁠।⁠। परीक्षित्! पिछले कल्पके अन्तमें ब्रह्माजीके सो जानेके कारण ब्राह्म नामक नैमित्तिक प्रलय हुआ था⁠। उस समय भूर्लोक आदि सारे लोक समुद्रमें डूब गये थे ⁠।⁠।⁠७⁠।⁠। प्रलयकाल आ जानेके कारण ब्रह्माजीको नींद आ रही थी, वे सोना चाहते थे⁠। उसी समय वेद उनके मुखसे निकल पड़े और उनके पास ही रहनेवाले हयग्रीव नामक बली दैत्यने उन्हें योगबलसे चुरा लिया ⁠।⁠।⁠८⁠।⁠। सर्वशक्तिमान् भगवान् श्रीहरिने दानवराज हयग्रीवकी यह चेष्टा जान ली⁠। इसलिये उन्होंने मत्स्यावतार ग्रहण किया ⁠।⁠।⁠९⁠।।⁠

जो मनुष्य भगवान्‌के इस अवतारका प्रतिदिन कीर्तन करता है, उसके सारे संकल्प सिद्ध हो जाते हैं और उसे परमगतिकी प्राप्ति होती है ⁠।⁠।⁠६०⁠।⁠।

प्रलयपयसि धातुः सुप्तशक्तेर्मुखेभ्यः 
श्रुतिगणमपनीतं प्रत्युपादत्त हत्वा ⁠।
 दितिजमकथयद् यो ब्रह्म सत्यव्रतानां
तमहमखिलहेतुं जिह्ममीनं नतोऽस्मि ⁠।⁠।⁠६१

प्रलयकालीन समुद्रमें जब ब्रह्माजी सो गये थे, उनकी सृष्टिशक्ति लुप्त हो चुकी थी, उस समय उनके मुखसे निकली हुई श्रुतियोंको चुराकर हयग्रीव दैत्य पातालमें ले गया था⁠। भगवान्‌ने उसे मारकर वे श्रुतियाँ ब्रह्माजीको लौटा दीं एवं सत्यव्रत तथा सप्तर्षियोंको ब्रह्मतत्त्वका उपदेश किया⁠। उन समस्त जगत्‌के परम कारण लीलामत्स्यभगवान को मैं नमस्कार करता हूं।।61।।

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